Thursday, August 14, 2008

धुप का टुकडा..

रोज सुबह,
धुप का छोटा सा टुकडा,
पीपल के पेड़ से
फुदक कर uterta है ,
मेरे घर के खपरों पर,
फिर उचक कर ,आँगन में कूदकर,
खिलखिलाता है,चढ़कर छत पर ,
और चला जाता है अपने रास्ते...
ओ धुप के टुकड़े!!
कभी तो आ bheeter
बरस मन के सूने आँगन में,
दे जा अपनी मुस्कुराहटें।
किन्तु वो नहीं आता...
चला जाता है अपनी बनायीं लीक पर
सोचती हूँ इसे अच्छा कहूँ या बुरा??
निष्ठुर कहूँ या साधक???

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