Thursday, August 14, 2008

हरिवंशराय बच्चन जी की एक उमगाती रचना...

है यही अरमान फिर पपीहा लौट आये,
फिर असंभव प्यास प्राणों में जगाये,
फिर अनंत अखंड नभ के बीच ले जाकर भरमाये,
फिर prateekha, फिर अमर विश्वासके veh गीत गाये,
पी कहाँ की रट लगाए ।
काल से संग्राम ,
जग के हास,जीवन की निराशा,
के लिए तैयार होना फिर सिखाये.....

No comments: