Tuesday, August 5, 2008

रात अपनी सी...

नही रहना तुम्हारे साथ साए की तरह,
कि पेरों तले रौंदी जाऊं,
रहने दो मुझे बनकर अहसास
हाँ, रात के साथ
हटा देता है सूरज प्यारी सी धुन्ध
जिसकी ओट में सोई थी धरती
ये राहे , ये पेड़, ये pagdandiyaan,
ये सारी प्रकृति
कितनी सुंदर , लजीली सी थी
कि अचानक
सत्य का करा गया अभिदर्शन
उफ़, कितना निर्मम है ये सूरज!!
रहने दो मुझे बनकर अहसास , हाँ रात के साथ
रात ...जिसमे सपने पलते हैं, कल्पनाएँ जगती है
और रच लेते हैं हम
अपना संसार चाहे जैसा
रहूंगी में तुम्हारे साथ
बंकर चाँद, जो आएगा रोज़
पर तभी होगा महसूस जब चोहेगे तुम
करेगा बातें ढेर सारी, वेरना चला जाएगा चुपचाप
बिना पदचाप अपनी राह
हाँ रात के साथ.............

1 comment:

vijay kumar sappatti said...

chaand jab aankon ke upar aayenga, to tera chehra nazar aayenga..