रोज सुबह,
धुप का छोटा सा टुकडा,
पीपल के पेड़ से
फुदक कर uterta है ,
मेरे घर के खपरों पर,
फिर उचक कर ,आँगन में कूदकर,
खिलखिलाता है,चढ़कर छत पर ,
और चला जाता है अपने रास्ते...
ओ धुप के टुकड़े!!
कभी तो आ bheeter
बरस मन के सूने आँगन में,
दे जा अपनी मुस्कुराहटें।
किन्तु वो नहीं आता...
चला जाता है अपनी बनायीं लीक पर
सोचती हूँ इसे अच्छा कहूँ या बुरा??
निष्ठुर कहूँ या साधक???
Thursday, August 14, 2008
हरिवंशराय बच्चन जी की एक उमगाती रचना...
है यही अरमान फिर पपीहा लौट आये,
फिर असंभव प्यास प्राणों में जगाये,
फिर अनंत अखंड नभ के बीच ले जाकर भरमाये,
फिर prateekha, फिर अमर विश्वासके veh गीत गाये,
पी कहाँ की रट लगाए ।
काल से संग्राम ,
जग के हास,जीवन की निराशा,
के लिए तैयार होना फिर सिखाये.....
फिर असंभव प्यास प्राणों में जगाये,
फिर अनंत अखंड नभ के बीच ले जाकर भरमाये,
फिर prateekha, फिर अमर विश्वासके veh गीत गाये,
पी कहाँ की रट लगाए ।
काल से संग्राम ,
जग के हास,जीवन की निराशा,
के लिए तैयार होना फिर सिखाये.....
Tuesday, August 5, 2008
रात अपनी सी...
नही रहना तुम्हारे साथ साए की तरह,
कि पेरों तले रौंदी जाऊं,
रहने दो मुझे बनकर अहसास
हाँ, रात के साथ
हटा देता है सूरज प्यारी सी धुन्ध
जिसकी ओट में सोई थी धरती
ये राहे , ये पेड़, ये pagdandiyaan,
ये सारी प्रकृति
कितनी सुंदर , लजीली सी थी
कि अचानक
सत्य का करा गया अभिदर्शन
उफ़, कितना निर्मम है ये सूरज!!
रहने दो मुझे बनकर अहसास , हाँ रात के साथ
रात ...जिसमे सपने पलते हैं, कल्पनाएँ जगती है
और रच लेते हैं हम
अपना संसार चाहे जैसा
रहूंगी में तुम्हारे साथ
बंकर चाँद, जो आएगा रोज़
पर तभी होगा महसूस जब चोहेगे तुम
करेगा बातें ढेर सारी, वेरना चला जाएगा चुपचाप
बिना पदचाप अपनी राह
हाँ रात के साथ.............
कि पेरों तले रौंदी जाऊं,
रहने दो मुझे बनकर अहसास
हाँ, रात के साथ
हटा देता है सूरज प्यारी सी धुन्ध
जिसकी ओट में सोई थी धरती
ये राहे , ये पेड़, ये pagdandiyaan,
ये सारी प्रकृति
कितनी सुंदर , लजीली सी थी
कि अचानक
सत्य का करा गया अभिदर्शन
उफ़, कितना निर्मम है ये सूरज!!
रहने दो मुझे बनकर अहसास , हाँ रात के साथ
रात ...जिसमे सपने पलते हैं, कल्पनाएँ जगती है
और रच लेते हैं हम
अपना संसार चाहे जैसा
रहूंगी में तुम्हारे साथ
बंकर चाँद, जो आएगा रोज़
पर तभी होगा महसूस जब चोहेगे तुम
करेगा बातें ढेर सारी, वेरना चला जाएगा चुपचाप
बिना पदचाप अपनी राह
हाँ रात के साथ.............
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